Hindi sad shayri
1...तेरे पास तो फिर भी *मैं* हूँ...
मेरे पास तो *मैं* भी नहीं...
2...एक ये कोशिश कि "वो" देख ना ले दिल के जखम
और
एक ये भी खवाहिश कि काश "वो" देखे कि कैसे बिखरे हैं हम
3..*ना मीठे हैं ना मीठा बनने की आदत हैं,*
*हम तो वो सच हैं ज़ो हमेशा कड़वे लगते हैं...*
4..बेचैन उमंगों को बहला के चले जाना,
हम तुमको न रोकेंगे बस आ के चले जाना...
5...तेरे महफिल में भीड़ तो थी पर माहौल कुछ बीरान था...
मुझे यूँ तेरे करीब देखकर हर शख़स बड़ा परेशान था...
6..माना की ना छुआ है ,
ना पाया है तुझको,
लेकिन तेरे इश्क में ,
जन्नत सा सुकून आया है मुझको...
7..*मै फिर याद आऊंगा*
*उस दिन...*
*जब तेरे ही बच्चे कहेंगे-*
*माँ ! आपने कभी किसी से प्यार किया ???*
8..मैं वो एक परिन्दा जो सब पर बोझ था...
एक शाम जब लौटा नहीं तो शाखों को उसी का इन्तजार रहा...
9...आँखों से कोसो दूर...
मुझसे ख़फा-ख़फा सी,
ये नींदें भी...
बिलकुल *तुम सी* हो गई हैं...
10...गर समझ सको तो एक सैलाब है भीतर,
ना समझ सको तो बस आँखें डबडबाई है...
मेरे पास तो *मैं* भी नहीं...
2...एक ये कोशिश कि "वो" देख ना ले दिल के जखम
और
एक ये भी खवाहिश कि काश "वो" देखे कि कैसे बिखरे हैं हम
3..*ना मीठे हैं ना मीठा बनने की आदत हैं,*
*हम तो वो सच हैं ज़ो हमेशा कड़वे लगते हैं...*
4..बेचैन उमंगों को बहला के चले जाना,
हम तुमको न रोकेंगे बस आ के चले जाना...
5...तेरे महफिल में भीड़ तो थी पर माहौल कुछ बीरान था...
मुझे यूँ तेरे करीब देखकर हर शख़स बड़ा परेशान था...
6..माना की ना छुआ है ,
ना पाया है तुझको,
लेकिन तेरे इश्क में ,
जन्नत सा सुकून आया है मुझको...
7..*मै फिर याद आऊंगा*
*उस दिन...*
*जब तेरे ही बच्चे कहेंगे-*
*माँ ! आपने कभी किसी से प्यार किया ???*
8..मैं वो एक परिन्दा जो सब पर बोझ था...
एक शाम जब लौटा नहीं तो शाखों को उसी का इन्तजार रहा...
9...आँखों से कोसो दूर...
मुझसे ख़फा-ख़फा सी,
ये नींदें भी...
बिलकुल *तुम सी* हो गई हैं...
10...गर समझ सको तो एक सैलाब है भीतर,
ना समझ सको तो बस आँखें डबडबाई है...
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