उर्दू ग़ज़ल

1...ग़मज़दा नहीं होता के इशारा नहीं होता,
आँख उनसे जो मिलती है तो क्या नहीं होता,

जलवा ना हो मानी का तो सूरत का असर क्या,
बुलबुल गुल-ए-तस्वीर का शायद नहीं होता,

खुदा बचाये मर्ज-ए-इश्क़ से मुझको,
सुनते है के ये अर्ज़ अच्छा नहीं होता,

ताश बह तेरे चेहरे को क्या दूं गुल-ए-तार से,
होता है शुगुफ्ता मगर इतना नहीं होता,

हम आह भी करते है तो हो जाते है बदनाम,
वो क़त्ल भी करते है तो चर्चा नहीं होता।

2..जान ही लेने की हिकमत में तरक़्क़ी देखी,
मौत का रोकने वाला कोई पैदा न हुआ,

उसकी बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सर पर,
ख़ैरियत गुज़री कि अंगूर के बेटा न हुआ,

ज़ब्त से काम लिया दिल ने तो क्या फ़ख़्र करूँ,
इसमें क्या इश्क की इज़्ज़त थी कि रुसवा न हुआ,

मुझको हैरत है यह किस पेच में आया "जान",
दामे-हस्ती में फँसा, जुल्फ़ का सौदा न हुआ।

Comments

Popular posts from this blog

Love Shayari | प्यार | HIndi Short stories

Emotional shayri

90 Very Funny Good Night Images, Memes, Photos for Whatsapp & FB